Human Rights Organisation

Human Rights Organistion

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क्या है महिला को अधिकार ?

भारत के संविधान में कई तरह के अधिकारों और नियमों की चर्चा की गई है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे संविधान में महिलाओं को कौन-कौन से आधिकार दिए गए हैं? अगर नहीं… तो आइए जानते हैं कि संविधान में महिलाओं को मिले हैं कौन-कौन से अधिकार…

1. महिलाओं को पिता और पिता की पुश्तैनी संपति में पूरा अधिकार मिला हुआ है। अगर लड़की के पिता ने खुद बनाई संपति वसीयत नहीं की है, तब उनकी मौत के बाद प्रॉपर्टी में लड़की को भी उतना ही हिस्सा मिलेगा, जितना लड़के को
और उनकी मां को। शादी के बाद भी महिला का यह अधिकार बना रहता है।

2. शादी के बाद पति की संपत्ति में महिला का मालिकाना हक नहीं होता, लेकिन पत्नी को गुजारा भत्ता देना पति का कर्तव्य है। महिला को अधिकार है कि पति उसका भरण-पोषण करे। कई कानूनी प्रावधान हैं, जिनके जरिए पत्नी गुजारा भत्ता मांग सकती है। कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, सीआरपीसी, हिंदू मैरिज ऐक्ट, हिंदू अडॉप्शन ऐंड मेंटिनेंस ऐक्ट और घरेलू हिंसा कानून के तहत गुजारे भत्ते की मांग की जा सकती है। अगर पति ने वसीयत बनाई है तो उसके बाद पत्नी को संपत्ति में हिस्सा मिलता है। अगर वसीयत नहीं है तो पत्नी को पति की खुद अर्जित की गई संपत्ति में हिस्सा मिलेगा, पैतृक संपत्ति में नहीं।

3. संविधान में लिखा है कि तलाकशुदा महिला को पति की पैतृक व विरासत योग्य संपत्ति से भी मुआवजा या हिस्सेदारी मिलेगी। इस मामले में कानून बनाया जाना है और इसके बाद पत्नी का हक बढ़ने की बात कही जा रही है। अगर पत्नी को तलाक के बाद पति की पैतृक संपत्ति में भी हिस्सा दिए जाने का प्रावधान किया गया तो इससे महिलाओं का हक बढ़ेगा।

4. कोई भी महिला अपने हिस्से की पैतृक संपत्ति और खुद अर्जित संपत्ति को बेच सकती है। इसमें कोई दखल नहीं दे सकता। महिला इस संपत्ति का वसीयत कर सकती है। महिला उस संपति से बच्चों को बेदखल भी कर सकती है। महिलाओं को अपने पिता के घर या फिर अपने पति के घर सुरक्षित रखने के लिए डीवी ऐक्ट (डोमेस्टिक वॉयलेंस ऐक्ट) का प्रावधान किया गया है।

5. लिव-इन रिलेशन में रहने वाली महिला को घरेलू हिंसा कानून के तहत प्रोटेक्शन का हक मिला हुआ है। अगर उसे किसी भी तरह से प्रताड़ित किया जाता है तो वह उसके खिलाफ शिकायत कर सकती है। लिव-इन में रहते हुए उसे राइट-टू-शेल्टर भी मिलता है। यानी जब तक यह रिलेशनशिप कायम है, तब तक उसे जबरन घर से नहीं निकाला जा सकता। लेकिन संबंध खत्म होने के बाद यह अधिकार खत्म हो जाता है। लिव-इन में रहने वाली महिलाओं को गुजारा भत्ता पाने का भी अधिकार है, लेकिन पार्टनर की मौत के बाद उसकी संपत्ति में अधिकार नहीं मिल सकता। यदि लिव-इन में रहते हुए पार्टनर ने वसीयत के जरिये संपत्ति लिव-इन पार्टनर को लिख दी है तो मृत्यु के बाद संपत्ति पार्टनर को मिल जाती है।

6. यौन शोषण, छेड़छाड़ या फिर रेप जैसी वारदातों के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं। महिलाओं के साथ इस तरह के घिनौने काम करने वालों को सख्त सजा दिए जाने का प्रावधान है। दिल्ली गैंगरेप के बाद सरकार ने एंटी-रेप लॉ बनाया
है। इसके तहत जो कानूनी प्रावधान किए गए हैं, उसमें रेप की परिभाषा में बदलाव किया गया है। आईपीसी की धारा-375 के तहत रेप के दायरे में प्राइवेट पार्ट या फिर ओरल सेक्स दोनों को ही रेप माना गया है। साथ ही प्राइवेट पार्ट के पेनिट्रेशन के अलावा किसी चीज के पेनिट्रेशन को भी इस दायरे में रखा गया है।

7. बलात्कार के मामले जिसमें पीड़िता की मौत हो जाए या कोमा में चली जाए, तो फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है। रेप में कम से कम 7 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है। रेप के कारण लड़की कोमा में चली जाए या फिर कोई शख्स दोबारा रेप के लिए दोषी पाया जाता है तो मामले में फांसी की सजा का प्रावधान है।

8. वर्क प्लेस पर भी महिलाओं को कई तरह के अधिकार मिल हैं। यौन शोषण से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में गाइडलाइंस तय की थीं। इसके तहत महिलाओं को प्रोटेक्ट किया गया है। सुप्रीम कोर्ट की यह गाइडलाइंस सरकारी
व प्राइवेट दफ्तरों में लागू है। सुप्रीम कोर्ट ने 12 गाइडलाइंस बनाई हैं। एंप्लॉयर या अन्य जिम्मेदार अधिकारी की ड्यूटी है कि वह यौन शोषण को रोके। यौन शोषण के दायरे में छेड़छाड़, गलत नीयत से छूना, यौन शोषण की डिमांड या आग्रह करना, महिला सहकर्मी को पॉर्न दिखाना, अन्य तरह से आपत्तिजनक व्यवहार करना या फिर इशारा करना आता है। इन मामलों के अलावा, कोई ऐसा एक्ट जो आईपीसी के तहत ऑफेंस है, की शिकायत महिला कर्मी द्वारा की जाती है, तो एंप्लॉयर की ड्यूटी है कि वह इस मामले में कार्रवाई करते हुए संबंधित अथॉरिटी को शिकायत करे।

 9. संविधान के अनुच्छेद-42 के तहत महिला सरकारी नौकरी में है या फिर किसी प्राइवेट संस्था में काम करती है, उसे मैटरनिटी लीव लेने का हक है। इसके तहत महिला को 12 हफ्ते की मैटरनिटी लीव मिलती है, जिसे वह अपनी जरूरत के हिसाब से ले सकती है। इस दौरान महिला को पूरी सैलरी और भत्ता दिया जाएगा। अगर महिला का अबॉर्शन हो जाता है तो भी उसे लाभ मिलेगा। इसके अलावा वह अपनी नौकरी के दौरान बच्चे के 18 साल के होने तक कभी भी दो साल की छुट्टी ले सकती है। मैटरनिटी लीव के दौरान महिला पर किसी तरह का आरोप लगाकर, उसे नौकरी से नहीं निकाला जा सकता। अगर महिला का एम्प्लॉयर इस बेनिफिट से उसे वंचित करने की कोशिश करता है तो महिला इसकी शिकायत कर
सकती है। महिला कोर्ट जा सकती है और दोषी को एक साल तक कैद की सजा हो सकती है।

10. महिला की सहमति के बिना उसका अबॉर्शन नहीं कराया जा सकता। जबरन अबॉर्शन कराने पर सख्त कानून बनाए गए हैं। कानून के मुताबिक, अबॉर्शन तभी कराया जा सकता है, जब गर्भ की वजह से महिला की जिंदगी खतरे में हो। 1971
में इसके लिए एक अलग कानून बनाया गया- मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट। इसके तहत अगर गर्भ के कारण महिला की जान खतरे में हो या फिर मानसिक और शारीरिक रूप से गंभीर परेशानी हो या गर्भ में पल रहा बच्चा विकलांगता
का शिकार हो तो अबॉर्शन कराया जा सकता है। इसके अलावा, अगर महिला मानसिक या फिर शारीरिक तौर पर इसके लिए सक्षम न हो भी तो अबॉर्शन कराया जा सकता है। अगर महिला के साथ बलात्कार हुआ हो और वह गर्भवती हो गई हो या फिर महिला के साथ ऐसे रिश्तेदार ने संबंध बनाए जो वर्जित संबंध में हों और महिला गर्भवती हो गई हो तो महिला का अबॉर्शन कराया जा सकता है। अगर किसी महिला की मर्जी के खिलाफ उसका अबॉर्शन कराया जाता है, तो ऐसे में दोषी
पाए जाने पर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।

11. दहेज प्रताड़ना और ससुराल में महिलाओं पर अत्याचार के दूसरे मामलों से निबटने के लिए कानून में सख्त प्रावधान किए गए हैं। महिलाओं को उसके ससुराल में सुरक्षित वातावरण मिले, कानून में इसका पुख्ता प्रबंध है। दहेज प्रताड़ना से बचाने के लिए 1986 में आईपीसी की धारा 498-ए का प्रावधान किया गया है। इसे दहेज निरोधक कानून कहा गया है। अगर किसी महिला को दहेज के लिए मानसिक, शारीरिक या फिर अन्य तरह से प्रताड़ित किया जाता है तो महिला की शिकायत पर इस धारा के तहत केस दर्ज किया जाता है। साथ ही यह गैर जमानती अपराध है। दहेज के लिए ससुराल में प्रताड़ित करने वाले तमाम लोगों को आरोपी बनाया जा सकता है।

12. महिला को शादी के वक्त उपहार के तौर पर कई चीजें दी जाती हैं, जिसे स्त्री धन कहते हैं। इन पर लड़की का पूरा हक होता है। इसके अलावा, वर-वधू को कॉमन यूज की तमाम चीजें दी जाती हैं, ये भी स्त्रीधन के दायरे में आती हैं। स्त्रीधन पर लड़की का पूरा अधिकार होता है। अगर ससुराल ने महिला का स्त्रीधन अपने पास रख लिया है तो महिला इसके खिलाफ आईपीसी की धारा-406 (अमानत में खयानत) की भी शिकायत कर सकती है। इसके तहत कोर्ट के आदेश से महिला को अपना स्त्रीधन वापस मिल सकता है।

13. पुलिस हिरासत में भी महिलाओं को कुछ खास अधिकार हैंः महिला की तलाशी केवल महिला पुलिसकर्मी ही ले सकती है। महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले पुलिस हिरासत में नहीं ले सकती। अगर महिला को कभी लॉकअप
में रखने की नौबत आती है, तो उसके लिए अलग से व्यवस्था होगी। बिना वॉरंट गिरफ्तार महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होगा और उसे जमानत संबंधी अधिकार के बारे में भी बताना जरूरी है। गिरफ्तार महिला के निकट संबंधी को सूचित करना पुलिस की ड्यूटी है। सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में कहा गया है कि जिस जज के सामने महिला को पहली बार पेश किया जा रहा हो, उस जज को चाहिए कि वह महिला से पूछे कि उसे पुलिस हिरासत में कोई बुरा बर्ताव तो नहीं झेलना पड़ा।

14. महिलाओं को फ्री लीगल ऐड दिए जाने का प्रावधान है। अगर कोई महिला किसी केस में आरोपी है तो वह फ्री कानूनी मदद ले सकती है। वह अदालत से गुहार लगा सकती है कि उसे मुफ्त में सरकारी खर्चे पर वकील चाहिए। महिला की आर्थिक स्थिति कुछ भी हो, लेकिन महिला को यह अधिकार मिला हुआ है कि उसे फ्री में वकील मुहैया कराई जाए। पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता कमिटी से संपर्क करेगी और महिला की गिरफ्तारी के बारे में उन्हें सूचित करेगी। लीगल ऐड कमिटी महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देगी।

 
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