क्या है गिरफ्तारी के समय अभियुक्त के अधिकार
गिरफ्तार व्यक्ति के निम्न कानूनी अधिकार होते है –
1- पूछताछ के दौरान अपने पसंद के अधिवकता सें मिलने का अधिकार –
धारा 41 डी दं0 प्र0 सं0 के अनुसार जब कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया जाता है तथा पुलिस द्वारा उससे परिप्रश्न किये जाते है, तो परिप्रशनों के दौरान उसे अपने पंसद के अधिवक्ता से मिलने का हक होगा, पूरे परिप्रश्नों के दौरान नहीं।
संविधान के अनुच्छेद 22 (1) में भी गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी पसंद के विधि व्यवसायी से परामर्श करने का मौलिक अधिकार दिया गया है।
2- गिरफ्तारी के आधार व जमानत के अधिकार के बारें जानने का अधिकार –
धारा 50(1) दं0प्र0सं0 के अनुसार किसी व्यक्ति को वारण्ट के बिना गिरफ्तार करने वाला प्रत्येक पुलिस अधिकरी या अन्य व्यक्ति उस व्यक्ति को उस अपराध की, जिसके लिए वह गिरफ्तार किया गया है पूर्ण विशिष्टियाँ या ऐसी गिरफ्तारी के अन्य आधार तुरंत सूचित करेगा।
धारा 50(2) दं0प्र0सं0 के अनुसार जहां कोई पुलिस अधिकरी अजमानती अपराध के अभियुक्त व्यक्ति से भिन्न किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करता है, वहां वह गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को सूचना देगा कि वह जमानत पर छोडे जाने का अधिकार है और वह प्रतिभू का इंतजाम करे।
3- गिरफ्तारी आदि के बारे में को सूचना का अधिकार –
धारा 50 ए (1) दं0प्र0सं0 के अनुसार इस संहिता के अधीन कोई गिरफ्तारी करने वाला प्रत्येक पुलिस अधिकरी या अन्य व्यक्ति ऐसी गिरफ्तार या उस स्थान के बारे में जहां गिरफ्तार किया गया व्यक्ति रखा जा रहा है, जानकारी उसके मित्रों, नातेदारों या ऐसे अन्य व्यक्ति को, जो गिरफ्तार किये गये व्यक्ति द्वारा ऐसी जानकारी देने के प्रयोजन के लिए प्रकट या नामर्निदिष्ट किया जाये, उसको तुरंत देगा ।
धारा 50 ए (2) के अनुसार पुलिस अधिकारी गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को, जैसे ही वह पुलिस थाने में लाया जाता है उपधारा 1 के अ धीन उसके अधिकारों के बारे में सूचित करेगा ।
धारा 50 ए (3) के अनुसार इस तथ्य की प्रविष्टि की ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी की सूचना किसे दी गई है, राज्य सरकार द्वारा विहित प्रारूप में रखी जाने वाली पुस्तक में की जायेगी।
धारा 50 ए(4) के अनुसार उस मजिस्टेट का जिसके समक्ष ऐसे गिरफ्तार किया गया व्यक्ति, पेश किया जाता है, यह कत्र्तव्य होगा कि वह अपना समाधान करे कि उपधारा (2), (3) की अपेक्षाओं का पालन किया गया है । गिरफ्तारी से 24 घंटे से अधिक निरूध न करने संबंधी अधिकार
धारा 56 दं0प्र0सं0 के अनुसार वारण्ट के बिना गिरफ्तार करने वाल पुलिस अधिकारी अनावश्यक विलंब के बिना और जमानत के संबंध में आवश्यक प्रावधानों के अधीन रहते हुये जो गिरफ्तार किया गया है उस मामले में अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष या किसी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के समक्ष ले जायेगा या भेजेगा।
धारा 57 दं0प्र0सं0 1973 के अनुसार कोई पुलिस अधिकारी वारण्ट के बिना गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को उससे अधिक अवधि के अभिरक्षा में निरूध नहीं रखेगा जो उसक मामले की सब परिस्थितियों में उचित है तथा ऐसी अवधि, मजिस्टेट के धारा 167 के अधीन विशेष आदेश के अभाव में गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्टेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोडकर 24 घंटे से अधिक की नहीं होगी।
संविधान के अनुच्छेद 22 (2) में भी इस संबंध में प्रावधान है की गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोडकर ऐसी गिरफ्तारी से 24 घंटे की अवधि में निकटतम मजिस्टेट के समक्ष पेश किया जायेगा और ऐसे किसी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के प्राधिकार के बिना उक्त अवधि से अधिक अवधि के लिए अभिरक्षा में निरूध नहीं रखा जायेगा।
4- हथकड़ी लगाने के बारे मे –
हथकड़ी लगाने के बारे में प्रेम चंद शुक्ला वि0 दिल्ली एडमिनिस्टेशन ए.आइ.आर. 1980 एस.सी.1535 में यह प्रतिपादित किया गया है कि विचाराधीन बंदियों को जेल से न्यायालय तक लाने या न्यायालय से जेल तक ले जाने तक हथकडी नहीं लगाई जाना चाहिए। बंदी की अभिरक्षा के लिए उत्तरदायी अधिकारी को प्रत्येक बंदी के मामले पर विचार करके यह निश्चय करना चाहिए कि कया बंदी ऐसा व्यक्ति है जिसकी परिस्थितियां या जिसका आचरण व्यवहार और चरित्र को ध्यान में रखते हुये यह माना जा सकता हे कि वह भागने का प्रयत्न करेगा या शंति भंग करेगा इसी सिद्धांत को ध्यान में रख कर बंदी को हथकडी लगाने या न लगाने का के बारे में विनिश्चय करना चाहिए।
5 -मेडिकल परीक्षण का अधिकार –
धारा 54 (1) दं0प्र0सं0 के अनुसार जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, तब गिरफ्तार किये जाने के तुरंत बाद उसका केन्द्रीय या राज्य सरकार की सेवा में चिकित्सा अधिकारी द्वारा या उसके उपलब्ध न होने पर पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा परीक्षण किया जायेगा, परंतु जहां गिरफ्तार व्यक्ति महिला है तो उसके शरीर का परीक्षण महिला चिकित्सा अधिकारी या उसके पर्यवेक्षण में या उसके उपलब्ध न होने पर महिला पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा किया जायेगा ।
धारा 54 (2) के अनुसार परीक्षण करने वाला अधिकारी गिरफ्तार किये गये व्यक्ति पर किसी क्षति या हिंसा के चिन्ह और उनके कारित होने का लगभग समय उल्लेख करते हुये अभिलेख तैयार करेगा ।
धारा 54 (3) के अनुसार परीक्षण प्रतिवेदन के एक परत गिरफ्तार किये गये व्यक्ति के या उसके द्वारा नामित व्यक्ति को दी जायेगी।
6-टेस्ट के सम्बन्ध में-
पोलीग्राफ टेस्ट, नारको टेस्ट या ब्रेन फिंगर प्रिंटिंग टेस्ट के बारे में अधिकार श्रीमति सैलवी विरूद्ध स्टेट आफ कर्नाटक, ए.आई.आर. 2010 एस.सी. 1974 में तीन न्याय मूर्तिगण की पीठ ने यह प्रतिपादित किया है कि स्वयं को अपराध में फसाने के विरूद्ध संरक्षण अभियुक्त को अनुसंधान के अवस्था में भी प्राप्त होता है बल्कि संदिग्ध और अपराध के गवाह को भी यह संरक्षण प्राप्त होता है अतः किसी व्यक्ति को पोलीग्राफ टेस्ट या नारको टेस्ट या ब्रेन फिंगर प्रिंट टेस्ट के लिए कहना संविधान के अनुच्छेद 20 (3) एवं 21 के तहत् निजता के अधिकार का उलंघन है ये जांचे धारा 53 ए एवं 54 दं.प्र.सं. के क्षेत्र में नहीं आती हैं परंतु न्यायिक मजिस्टेट के सामने संबंधित व्यक्ति की सहमति अभिलिखित करने के पश्चात ऐसे टेस्ट करवाये जा सकते है और वह धारा 27 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत स्वीकार किये जा सकते हैं।
8- आवश्यक मामलों में ही गिरफ्तारी का अधिकार
किसी भी व्यक्ति को पुलिस धारा 41 एवं धारा 42 दं.प्र.सं. में वर्णित परिस्थितियाँ होने पर ही गिरफ्तार कर सकती हैं।
धारा 41 ए दं.प्र.सं. के अनुसार यदि मामला धारा 41 दं.प्र.सं. में नहीं आता है तब पुलिस अधिकारी का यह कत्र्तव्य है कि अभियुक्त को सूचना पत्र देगा और सूचना पत्र में उपस्थिति का स्थान और समय स्पष्ट किया जायेगा और यदि अभियुक्त सूचना पत्र की पालना में उपस्थित नहीं होता है केवल तभी उसे गिरफ्तार किया जा सकेगा अन्यथा नहीं।
9- विविध तथ्य –
धारा 53 दं.प्र.सं. में गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी की प्रार्थना पर अभियुक्त के चिकित्सा व्यवसायी द्वारा परीक्षण करने के प्रावधान है जिसके अनुसार यदि पुलिस अधिकारी के पास यह विश्वास करने के उचित आधार होते है कि गिरफ्तार व्यक्ति की शारीरिक परीक्षा से अपराध किये जाने के बारे में साक्ष्य मिल सकती है तब उप निरीक्षण या उससे उपर की पंक्ति का पुलिस अधिकारी गिरफ्तार व्यक्ति का शारीरिक परीक्षण करवा सकता है। संजीव नंदा विरूद्ध स्टेट आफ एन.सी.टी. देल्ही, 2007 सी.आर.एल.जे. 3786 में माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया है कि धारा 53 दं.प्र.सं. पुलिस अधिकारी के निवेदन पर अभियुक्त के चिकित्सा व्यवसायी द्वारा परीक्षण का प्रावधान करती है न्यायालय भी ऐसी शक्तियों का प्रयोग उचित मामले में कर सकते है और अभियुक्त को उसके रक्त का नमूना देने के लिए निर्देश कर सकते है चाहे अभियुक्त जमानत पर हो। धारा 53ए दं.प्र.सं. में बलात्संग के अपराधी व्यक्ति की चिकित्सा व्यवसायी द्वारा परीक्षा करवाने के प्रावधान है। कृष्ण कुमार मलिक विरूद्ध स्टेट आफ हरियाणा, (2011) 7 एस.सी.सी. 130 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया है कि धारा 53 ए दं.प्र.सं. के प्रावधानों के प्रकाश में अभियोजन के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह अभियोक्त्री के वस्त्रों पर पाये गये शिमन और अभियुक्त के शिमन के मिलान या डी.एन.ए. टेस्ट उचित मामले में करवावे।
जब भी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करके किसी मजिस्टेट या न्यायाधीश के समक्ष पेश किया जाता है तो उसे इस बात का समाधान करना चाहिये कि गिरफ्तारी उक्त प्रावधानों के अनुसार की गई है साथ ही अभियुक्त के संविधान द्वारा एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 द्वारा दिये गये उक्त अधिकारों का हनन तो नहीं हुआ है और यदि ऐसा पाया जाता है तब उचित वैधानिक
कार्यवाही भी की जाना चाहिए।
पूछताछ के दौरान गिरफ्तारी महिला के अधिकार
-आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-160 के अंतर्गत किसी भी महिला को पूछताछ के लिए थाने या अन्य किसी स्थान पर नहीं बुलाया जाएगा।
-उनके बयान उनके घर पर ही परिवार के जिम्मेदार सदस्यों के सामने ही लिए जाएंगे।
– रात को किसी भी महिला को थाने में बुलाकर पूछताछ नहीं करनी चाहिए। बहुत जरुरी हो तो परिवार के सदस्यों या 5 पड़ोसियों के सामने उनसे पूछताछ की जानी चाहिए।
-पूछताछ के दौरान शिष्ट शब्दों का प्रयोग किया जाए।
गिरफ्तारी के दौरान अधिकार
-महिला अपनी गिरफ्तारी का कारण पूछ सकती है।
-गिरफ्तारी के समय महिला को हथकड़ी नहीं लगाई जाएगी।
-महिला की गिरफ्तारी महिला पुलिस द्वारा ही होनी चाहिए।
-सी.आर.पी.सी. की धारा-47(2) के अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति को ऐसे रिहायशी मकान से गिरफ्तार करना हो, जिसकी मालकिन कोई महिला हो तो पुलिस को उस मकान में घुसने से पहले उस औरत को बाहर आने का आदेश देना होगा और बाहर आने में उसे हर संभव सहायता दी जाएगी।
-यदि रात में महिला अपराधी के भागने का खतरा हो तो सुबह तक उसे उसके घर में ही नजरबंद करके रखा जाना चाहिए। सूर्यास्त के बाद किसी महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
-गिरफ्तारी के 24् घंटों के भीतर महिला को मजिस्टे्रट के समक्ष पेश करना होगा।
-गिरफ्तारी के समय महिला के किसी रिश्तेदार या मित्र को उसके साथ थाने
आने दिया जाएगा।
थाने में महिला अधिकार –
गिरफ्तारी के बाद महिला को केवल महिलाओं के लिए बने लॉकअप में ही रखा जाएगा या फिर महिला लॉकअप वाले थाने में भेज दिया जाएगा।
-पुलिस द्वारा मारे-पीटे जाने या दुर्व्यवहार किए जाने पर महिला द्वारा मजिस्टे्रट से डॉक्टरी जांच की मांग की जा सकती है।
-सी.आर.पी.सी. की धारा-51 के अनुसार जब कभी किसी स्त्री को गिरफ्तार किया जाता है और उसे हवालात में बंद करने का मौका आता है तो उसकी तलाशी किसी अन्य स्त्री द्वारा शिष्टता का पालन करते हुए ली जाएगी।
तलाशी के दौरान अधिकार
-धारा-47(2)के अनुसार महिला की तलाशी केवल दूसरी महिला द्वारा ही शालीन तरीके से ली जाएगी। यदि महिला चाहे तो तलाशी लेने वाली महिला पुलिसकर्मी की तलाशी पहले ले सकती है। महिला की तलाशी के दौरान स्त्री के सम्मान को बनाए रखा जाएगा। सी.आर.पी.सी. की धारा-1000 में भी ऐसा ही प्रावधान है।
जांच के दौरान अधिकार–
सी.आर.पी.सी. की धारा-53(2) के अंतर्गत यदि महिला की डॉक्टरी जांच करानी पड़े तो वह जांच केवल महिला डॉक्टर द्वारा ही की जाएगी।
-जांच रिपोर्ट के लिए अस्पताल ले जाते समय या अदालत में पेश करने के लिए ले जाते समय महिला सिपाही का महिला के साथ होना जरुरी है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर.) दर्ज कराते समय अधिकार–
पुलिस को निर्देश है कि वह किसी भी महिला की एफ.आई.दर्ज करे।
-रिपोर्ट दर्ज कराते समय महिला किसी मित्र या रिश्तेदार को साथ ले जाए।
-रिपोर्ट को स्वयं पढ़ने या किसी अन्य से पढ़वाने के बाद ही महिला उस पर हस्ताक्षर करें।
-उस रिपोर्ट की एक प्रति उस महिला को दी जाए।
-पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न किए जाने पर महिला वरिष्ठस्न् पुलिस अधिकारी या स्थानीय मजिस्ट्रेट से मदद की मांग कर सकती है।
– धारा-437 के अंतर्गत किसी गैर जमानत मामले में साधारणयता जमानत नहीं ली जाती है, लेकिन महिलाओं के प्रति नरम रुख अपनाते हुए उन्हें इन मामलों में भी जमानत दिए जाने का प्रावधान है।
-किसी महिला की विवाह के बाद सात वर्ष के भीतर संदिग्ध अवस्था में मृत्यु होने पर धारा-174(3) के अंतर्गत उसका पोस्टमार्टम प्राधिकृञ्त सर्जन द्वारा तथा जांच एस.डी.एम. द्वारा की जानी अनिवार्य है।
-धारा-416 के अंतर्गत गर्भवती महिला को मृत्यु दंड से छूट दी गई है।